प्रदेश में आचार संहिता प्रभावी होने के बाद कर्मचारियों की हड़ताल हवा में।
बीकानेर। प्रदेश में आचार संहिता प्रभावी होने के बाद हड़ताल कर रहे कर्मचारियों की हालत ‘ बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले…’ जैसी हो गई है।
सरकार ने हड़तालियों की मांगे भी नहीं मानी, वेतन भी कटेगा और अब काम पर भी वापस लौट आए हैं। कुल मिला कर जैसे थे वैसे ही रहे।
चुनावी वर्ष में सरकारी कर्मचारियों की ओर से हड़ताल किया जाना कोई नई बात नहीं है। दबाव बना कर सरकार से मांगे मनवाना काफी पहले से ही सरकारी कर्मचारी करते रहे हैं।
इस बार भी 116 विभागों के मंत्रालयिक कर्मचारी तकरीबन 23 दिनों से हड़ताल पर थे। इनके अलावा रोडवेजकर्मी, पटवारी, गिरदावर, एएनएम, लेखाकार, डीटीओ कर्मचारी, पंचायतीराज कर्मचारी, कृषि पर्यवेक्षक, सूचना सहायक सहित कर्मचारियों का बड़ा वर्ग हड़ताल पर था। इस बार सरकार की ओर से भी काफी सख्ती दिखाई गई और वित्त विभाग ने हड़ताल पर बैठे कर्मचारियों के वेतन काटने का आदेश जारी कर दिया।
हड़ताली कर्मचारियों की समस्या पहले ही हल नहीं हो रही थी कि प्रदेश में आचार संहिता प्रभावी होने का एलान हो गया। ऐसे में कर्मचारियों पर दोहरी मार पड़ गई। क्योंकि सरकार ने उनकी मांगे भी नहीं मानी, वेतन भी कटेगा और काम पर भी खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। ऐसे में उन पर यह टिप्पणी सटीक बैठती है कि ‘ बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले…’ कर्मचारियों को इस बारे में बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि उनके साथ ऐसा होगा।
हड़ताल से सिर्फ आम आदमी हुआ परेशान
सरकार और कर्मचारियों की आपसी खींचतान में सिर्फ आम आदमी ही परेशान हुआ। सरकारी दफ्तरों में फाइलें जहां की तहां रुकी रहीं। व्यापारी के साथ-साथ किसान वर्ग भी काम नहीं होने से परेशान रहा। रोडवेज की बसें नहीं चलने से आमजन का सफर मुश्किल हो गया। पंचायतकर्मियों की छुट्टी से गांवों में भी कार्य ठप रहे। कुल मिला कर हड़ताल का खमियाजा सबसे ज्यादा आम नागरिक को ही भुगतना पड़ा है।